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कविता

मेरे जीवन के मधुबन में

नीरज कुमार नीर


सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में

प्रेम सिंचित हरी वसुंधरा
पल पल में जीवन महकाओ
परितप्त हृदय के मरुतल पर
मेघा दल बन कर छा जाओ
बस जाओ न प्रतिबिंब बनकर
मेरे जीवन के दर्पण में
सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में...

तुझ से ही है मेरा होना
तुझ से मिलकर हँसना रोना
तुम चंदा,  मैं टिम टिम तारा
अर्पण तुझ पर जीवन सारा
तुझ से दूर रहूँ मैं कैसे
आसक्त बँधा हूँ बंधन में
सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में...

प्रेम भाव की अविरल धारा
तुम दिल जीती या मैं हारा
बात बराबर दोनों ही है
तुम मेरी या मैं तुम्हारा
एक ख्वाब बन कर बसी रहो
तुम मेरे दोनों नयनन में
सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में...
 


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